𑓇 𑒢𑒧𑒬𑓂𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒰𑒨𑓃𑒻
ॐ नमश्चण्डिकाय़ै

ॐ चण्डिका देवी केँ प्रणाम।

𑒫𑒱𑒬𑒳𑒠𑓂𑒡𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢𑒠𑒹𑒯𑒰𑒨𑓃 𑒞𑓂𑒩𑒱𑒫𑒹𑒠𑒲 𑒠𑒱𑒫𑓂𑒨𑒔𑒏𑓂𑒭𑒳𑒭𑒹 ।
𑒬𑓂𑒩𑒹𑒨𑓁 𑒣𑓂𑒩𑒰𑒣𑓂𑒞𑒱𑒢𑒱𑒧𑒱𑒞𑓂𑒞𑒰𑒨 𑒢𑒧𑓁 𑒮𑒼𑒧𑒰𑒩𑓂𑒠𑓂𑒡𑒡𑒰𑒩𑒱𑒝𑒹 ॥
विशुद्धज्ञानदेहाय़ त्रिवेदी दिव्यचक्षुषे ।
श्रेयः प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्द्धधारिणे ॥

विशुद्ध ज्ञानक देहवाली देवीकेँ, त्रिवेदी स्वरूपकेँ दिव्य दृष्टि वला, कल्याण आ सफलताक प्राप्तिक हेतु, सोमक अर्धचन्द्र धारण करनिहार देवी केँ प्रणाम।

𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒠𑒻𑒫 𑒣𑒚𑒹𑒠𑓂𑒨𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒧𑒢𑓂𑒞𑓂𑒩𑒰𑒝𑒰𑒧𑒣𑒱 𑒏𑒲𑒪𑒏𑒧𑓂 ।
𑒮𑒼𑓄𑒣𑒱 𑒏𑓂𑒭𑒹𑒧𑒧𑒫𑒰𑒣𑓂𑒢𑒼𑒞𑒱 𑒮𑒞𑒞𑓀 𑒖𑒣𑒞𑒞𑓂𑒣𑒩𑓁 ॥
सर्व्वदैव पठेद्यस्तु मन्त्राणामपि कीलकम् ।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जपतत्परः ॥

जे व्यक्ति सदा एहि  कीलक मंत्र पढ़ैत छथि, ओ व्यक्ति निरंतर जप मे तल्लीन रहिकेँ सुख-समृद्धि प्राप्त करैत अछि।

𑒮𑒱𑒠𑓂𑒡𑒨𑓃𑒢𑓂𑒞𑓂𑒨𑒳𑒔𑓂𑒔𑒰𑒙𑒢𑒰𑒠𑒲𑒢𑒱 𑒫𑒮𑓂𑒞𑒴𑒢𑒱 𑒮𑒏𑓂𑒪𑒰𑒢𑓂𑒨𑒣𑒱 ।
𑒋𑒞𑒹𑒢 𑒮𑓂𑒞𑒳𑒫𑒞𑒰𑒢𑓂𑒠𑒹𑒫𑒲 𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑒫𑒵𑒢𑓂𑒠𑒹𑒢 𑒮𑒱𑒡𑓂𑒨𑒞𑒱 ॥
सिद्धय़न्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सक्लान्यपि ।
एतेन स्तुवतान्देवी स्तोत्रवृन्देन सिध्यति ॥

उच्चाटन (बाधा हटेबा) आ अन्य सर्व प्रकारक सिद्धि प्राप्त होइत अछि। देवीक स्तोत्र सभक पाठ सँ एहि सब बातक सिद्धि संभव अछि।

𑒢 𑒧𑒢𑓂𑒞𑓂𑒩𑒼 𑒢𑒾𑒭𑒡𑒢𑓂𑒞𑒞𑓂𑒩 𑒢 𑒏𑒱𑒘𑓂𑒔𑒱𑒠𑒣𑒱 𑒫𑒱𑒠𑓂𑒨𑒞𑒹 ।
𑒫𑒱𑒢𑒰 𑒖𑒣𑓂𑒨𑒹𑒢 𑒮𑒱𑒠𑓂𑒡𑒨𑓃𑒹𑒞 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒧𑒳𑒔𑓂𑒔𑒰𑒙𑒢𑒰𑒠𑒱𑒏𑒧𑓂 ||
न मन्त्रो नौषधन्तत्र न किञ्चिदपि विद्यते ।
विना जप्येन सिद्धय़ेत सर्व्वमुच्चाटनादिकम् ||

हुनका लोकनिकेँ अपन काजक सिद्धिक लेल मंत्र, औषधि वा कोनो अन्य साधनक उपयोग करबाक आवश्यकता नहि होइत छैक। बिना जप के, हुनकर उत्कर्ष आदिक सब आध्यात्मिक कर्म सिद्ध भऽ जाइत अछि।

𑒮𑒧𑒑𑓂𑒩𑒰𑒝𑓂𑒨𑒣𑒱 𑒮𑒹𑒞𑓂𑒮𑓂𑒨𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒪𑒼𑒏𑒹 𑒬𑒓𑓂𑒏𑒰𑒧𑒱𑒧𑒰𑓀 𑒯𑒩𑓁 ।
𑒏𑒵𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒢𑒱𑒧𑒢𑓂𑒞𑓂𑒩𑒨𑓃𑒰𑒧𑒰𑒮 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒧𑒹𑒫𑒧𑒱𑒠𑓀 𑒬𑒳𑒦𑒧𑓂 ॥
समग्राण्यपि सेत्स्यन्ति लोके शङ्कामिमां हरः ।
कृत्वा निमन्त्रय़ामास सर्व्वमेवमिदं शुभम् ॥

एतबे नहि, हुनकर सभटा मनचाहा बात सेहो पूरा भ' जाइत छनि. लोकक मोन मे एकटा संदेह छल जे ‘जखन मात्र सप्तशतिक पूजा कयला सँ वा सप्तशति केँ छोड़ि अन्य मंत्रक पूजा कयला सँ सब कार्य समान रूप सँ सम्पन्न होइत अछि तखन कोन विधि सर्वोत्तम अछि ? ' लोकक एहि शंका केँ सोझाँ मे राखि भगवान शंकर अपन लग आयल जिज्ञासु लोक केँ बुझेलनि जे सप्तशती नामक ई सम्पूर्ण स्तोत्र सर्वोत्तम आ लाभकारी अछि |

𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑓀 𑒫𑒻 𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒰𑒨𑓃𑒰𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒞𑒔𑓂𑒔 𑒑𑒳𑒣𑓂𑒞𑒘𑓂𑒔𑒏𑒰𑒩 𑒮𑓁 ।
𑒮𑒧𑒰𑒣𑓂𑒢𑒼𑒞𑒱 𑒮𑒳𑒣𑒳𑒝𑒨𑒹𑒢 𑒞𑒰𑓀 𑒨𑒟𑒰𑒫𑒢𑓂𑒢𑒱𑒧𑒢𑓂𑒞𑓂𑒩𑒝𑒰𑒧𑓂 ||
स्तोत्रं वै चण्डिकाय़ास्तु तच्च गुप्तञ्चकार सः ।
समाप्नोति सुपुणयेन तां यथावन्निमन्त्रणाम् ||

महादेव एहि शास्त्रक शुभ निमंत्रण कऽ लोकमेँ संदेहकेँ दूर कएलक। चण्डिकाक ई स्तोत्र बहुत गुप्त अछि, जकर पाठ कऽ लोक अपन मनोरथ पूर कऽ सकैत अछि।

𑒮𑒼𑓄𑒣𑒱 𑒏𑓂𑒭𑒹𑒧𑒧𑒫𑒰𑒣𑓂𑒢𑒼𑒞𑒱 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒧𑒹𑒞𑒢𑓂𑒢 𑒮𑓀𑒬𑒨𑓃𑓁 ।
𑒏𑒵𑒭𑓂𑒝𑒰𑒨𑓃𑒰𑓀 𑒫𑒰 𑒔𑒞𑒳𑒩𑓂𑒠𑓂𑒠𑒬𑓂𑒨𑒰𑒧𑒭𑓂𑒙𑒧𑓂𑒨𑒰𑓀 𑒫𑒰 𑒮𑒧𑒰𑒯𑒱𑒞𑓁 ॥
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्व्वमेतन्न संशय़ः ।
कृष्णाय़ां वा चतुर्द्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ॥

एहि पाठक प्रतिफल सँ व्यक्ति सब कष्ट सँ मुक्त होइत अछि। कृष्ण पक्षक चतुर्दशी वा अष्टमीकेँ एहि पाठक प्रभाव बहुत बढ़ि जाइत अछि।

𑒠𑒠𑒰𑒞𑒱 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒑𑒵𑒯𑓂𑒝𑒰𑒞𑒱 𑒢𑒰𑒢𑓂𑒨𑒟𑒻𑒭𑒰 𑒣𑓂𑒩𑒮𑒱𑒠𑓂𑒡𑒨𑒞𑒱 ।
𑒃𑒞𑓂𑒟𑓀 𑒩𑒴𑒣𑒹𑒝 𑒤𑒲𑒪𑒹𑒢 𑒧𑒯𑒰𑒠𑒹𑒫𑒹𑒢 𑒏𑒲𑒪𑒱𑒞𑒧𑓂 ॥
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसिद्धयति ।
इत्थं रूपेण फीलेन महादेवेन कीलितम् ॥
𑒮 𑒋𑒫 𑒏𑓂𑒭𑒹𑒧𑒧𑒰𑒣𑓂𑒢𑒼𑒞𑒱 𑒮𑒠𑒰 𑒖𑒣𑓂𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒢 𑒮𑓀𑒬𑒨𑓃𑓁 ।
𑒨𑒼 𑒢𑒱𑒭𑓂𑒏𑒲𑒪𑒰𑓀 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒨𑒻𑒢𑒰𑓀 𑒢𑒱𑒞𑓂𑒨𑓀𑒖𑒣𑒞𑒱 𑒮𑓀𑒮𑓂𑒤𑒳𑒙𑒧𑓂 ॥
स एव क्षेममाप्नोति सदा जप्त्वा न संशय़ः ।
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यंजपति संस्फुटम् ॥

ओहि व्यक्ति केँ सिद्धि प्राप्त होइत अछि, आ ओ गन्धर्व समान सम्मानित होइत अछि। एहन व्यक्तिकेँ कोनो प्रकारक भय नहि रहैत अछि, आ ने अकाल मृत्यु होइत अछि। मृत्यु उपरांत सेहो ओ मोक्ष प्राप्त करैत अछि।

𑒮 𑒮𑒱𑒠𑓂𑒡𑓁 𑒮𑒑𑒝𑓁 𑒮𑒼𑓄𑒣𑒱 𑒑𑒢𑓂𑒡𑒩𑓂𑒫𑒼 𑒖𑒰𑒨𑒞𑒹 𑒢𑒩𑓁 ।
𑒢 𑒔𑒻𑒫𑒰𑒣𑓂𑒨𑒙𑒞𑒮𑓂𑒞𑒮𑓂𑒨 𑒦𑒨𑓀 𑒏𑓂𑒫𑒰𑒣𑒱 𑒯𑒱 𑒖𑒰𑒨𑒞𑒹 ॥
स सिद्धः सगणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः ।
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापि हि जायते ॥

𑒢𑒰𑒣𑒧𑒵𑒞𑓂𑒨𑒳𑒫𑒬𑓀 𑒨𑒰𑒞𑒱 𑒧𑒵𑒞𑒼 𑒧𑒼𑒏𑓂𑒭𑒧𑒫𑒰𑒣𑓂𑒢𑒳𑒨𑒰𑒞𑓂 ।
𑒖𑓂𑒘𑒰𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒣𑓂𑒩𑒰𑒩𑒦𑓂𑒨 𑒏𑒳𑒩𑓂𑒫𑒲𑒞 𑒯𑓂𑒨𑒏𑒳𑒩𑓂𑒫𑒰𑒝𑒼 𑒫𑒱𑒢𑒬𑓂𑒨𑒞𑒱 ||
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ।
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत ह्यकुर्वाणो विनश्यति ||

𑒞𑒞𑒼 𑒖𑓂𑒘𑒰𑒞𑓂𑒫𑒻𑒫 𑒮𑒧𑓂𑒣𑒢𑓂𑒢𑒧𑒱𑒠𑒧𑓂𑒣𑓂𑒩𑒰𑒩𑒦𑓂𑒨𑒞𑒹 𑒖𑒢𑒻𑓁 ।
𑒮𑒾𑒦𑒰𑒑𑓂𑒨𑒰𑒠𑒱 𑒔 𑒨𑒞𑓂𑒏𑒱𑒘𑓂𑒔𑒱𑒠𑒵𑒬𑓂𑒨𑒞𑒹 𑒪𑒪𑒢𑒰𑒖𑒢𑒹 ॥
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदम्प्रारभ्यते जनैः ।
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिदृश्यते ललनाजने ॥

𑒞𑒞𑓂𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑓀 𑒞𑒞𑓂𑒣𑓂𑒩𑒮𑒰𑒠𑒹𑒢 𑒞𑒹𑒢 𑒖𑒰𑒣𑓂𑒨𑒧𑒱𑒠𑓀 𑒬𑒳𑒦𑒧𑓂 ।
𑒬𑒢𑒻𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒖𑒣𑓂𑒨𑒧𑒰𑒢𑒹𑓄𑒮𑓂𑒧𑒱𑒿𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑒹 𑒮𑒧𑓂𑒣𑒞𑓂𑒞𑒱𑒩𑒳𑒔𑒏𑒻𑓁 ॥
तत्सर्व्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम् ।
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिँस्तोत्रे सम्पत्तिरुचकैः ॥

𑒦𑒫𑒞𑓂𑒨𑒹𑒫 𑒮𑒧𑒑𑓂𑒩𑒰𑓄𑒣𑒱 𑒞𑒞𑓁 𑒣𑓂𑒩𑒰𑒩𑒦𑓂𑒨𑒧𑒹𑒫 𑒞𑒞𑓂 ।
𑒌𑒬𑓂𑒫𑒩𑓂𑒨𑓀 𑒞𑒞𑓂𑒣𑓂𑒩𑒮𑒰𑒠𑒹𑒢 𑒮𑒾𑒦𑒰𑒑𑓂𑒨𑒰𑒩𑒼𑒑𑓂𑒨𑒮𑒧𑓂𑒣𑒠𑓁 ॥
भवत्येव समग्राऽपि ततः प्रारभ्यमेव तत् ।
ऐश्वर्यं तत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः ॥

𑒬𑒞𑓂𑒩𑒳𑒯𑒰𑒢𑒱𑓁 𑒣𑒩𑒼𑒧𑒼𑒏𑓂𑒭𑓁 𑒮𑓂𑒞𑒴𑒨𑒞𑒹 𑒮𑒰 𑒢 𑒏𑒱𑓀 𑒖𑒢𑒻𑓁 ।
𑒣𑓂𑒩𑒟𑒧𑓀 𑒣𑒚𑒞𑒹 𑒠𑒹𑒫𑓂𑒨𑒰 𑒯𑓂𑒨𑒑𑓂𑒩𑒹 𑒦𑒴𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒬𑒳𑒔𑒱𑒮𑓂𑒞𑒟𑒰 ॥
शत्रुहानिः परोमोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ।
प्रथमं पठते देव्या ह्यग्रे भूत्वा शुचिस्तथा ॥

𑒏𑒲𑒪𑒏𑒹𑒨𑓀 𑒮𑒧𑒰𑒐𑓂𑒨𑒰𑒞𑒰 𑒣𑒬𑓂𑒔𑒰𑒞𑓂𑒮𑒣𑓂𑒞𑒬𑒞𑒲 𑒮𑓂𑒞𑒳𑒞𑒱𑓁 ।
𑒢𑒱𑒭𑓂𑒏𑒲𑒪𑒏𑒢𑓂𑒞𑒞𑓁 𑒏𑒵𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒐𑓂𑒨𑒰𑒞𑒰 𑒢𑒱𑒭𑓂𑒏𑒲𑒪𑒏𑒰𑒩𑒝𑒰𑒞𑓂 ||
कीलकेयं समाख्याता पश्चात्सप्तशती स्तुतिः ।
निष्कीलकन्ततः कृत्वा ख्याता निष्कीलकारणात् ||

𑒠𑒹𑒫𑓂𑒨𑒰𑒬𑓂𑒔𑒻𑒫 𑒫 𑒧𑒯𑒰𑒦𑒏𑓂𑒞𑒨𑒰 𑒞𑒹𑒢𑒰𑒦𑒲𑒭𑓂𑒙𑒤𑒪𑒰 𑒦𑒫𑒹𑒞𑓂 ।
देव्याश्चैव व महाभक्तया तेनाभीष्टफला भवेत् ।

𑒨𑓁 𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑒧𑒹𑒞𑒠𑒢𑒳𑒫𑒰𑒮𑒩𑒧𑒧𑓂𑒥𑒱𑒏𑒰𑒨𑒰𑓁
𑒬𑓂𑒩𑒹𑒨𑒮𑓂𑒏𑒩𑒧𑓂𑒣𑒚𑒞𑒱 𑒫𑒰 𑒨𑒠𑒱 𑒫𑒰 𑒬𑒵𑒝𑒼𑒞𑒱 ॥
𑒮𑒯𑓂𑒨𑒻𑒯𑒱𑒏𑓀 𑒤𑒪𑒧𑒫𑒰𑒣𑓂𑒨 𑒫𑒱𑒩𑒰𑒖𑒞𑒹𑓄𑒮𑒾
𑒖𑒰𑒨𑒹𑒞 𑒮 𑒣𑓂𑒩𑒱𑒨𑒞𑒧𑒼 𑒧𑒠𑒱𑒩𑒹𑒏𑓂𑒭𑒝𑒰𑒢𑒰𑒧𑓂 ॥
यः स्तोत्रमेतदनुवासरमम्बिकायाः
श्रेयस्करम्पठति वा यदि वा शृणोति ।।
सह्यैहिकं फलमवाप्य विराजतेऽसौ
जायेत स प्रियतमो मदिरेक्षणानाम् ॥

देवीक प्रति गहन भक्ति सँ एहि स्तोत्रक जपक फल अबश्य प्राप्त होइत अछि।
जे कोनो व्यक्ति नियमित रूप सँ अंबिकाक एहि स्तोत्रकेँ पढ़ैत अछि वा सुनैत अछि,
ओ एहि लोकमे सफल होइत अछि आ मदिरा समान सुन्दर नयनवाली नारीसभक प्रिय बनि जाइत अछि।

* 𑒃𑒞𑒱 𑒏𑒲𑒪𑒏𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑒧𑓂 *
* इति कीलकस्तोत्रम् *