𑓇 𑒢𑒧𑒬𑓂𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒰𑒨𑓃𑒻
ॐ नमश्चण्डिकाय़ै
ॐ चण्डिका देवी केँ प्रणाम।
॥ 𑒧𑒰𑒩𑓂𑒏𑓂𑒏𑒝𑓂𑒛𑒹𑒨𑓃 𑒅𑒫𑒰𑒔 ॥
॥ मार्क्कण्डेय़ उवाच ॥
मार्क्कण्डेय़ ऋषि कहैत छथि।
𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒢𑓂 𑒏𑒹𑒢 𑒣𑓂𑒩𑒏𑒰𑒩𑒹𑒝 𑒠𑒳𑒩𑓂𑒑𑒰𑒧𑒰𑒯𑒰𑒞𑓂𑒧𑓂𑒨𑒧𑒳𑒞𑓂𑒞𑒧𑒧𑓂 ।
𑒬𑒲𑒒𑓂𑒩𑓀 𑒮𑒱𑒠𑓂𑒡𑓂𑒨𑒞𑒱 𑒞𑒞𑓂𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑓀 𑒏𑒟𑒨𑓃𑒮𑓂𑒫 𑒧𑒯𑒰𑒧𑒞𑒹 ||
ब्रह्मन् केन प्रकारेण दुर्गामाहात्म्यमुत्तमम् ।
शीघ्रं सिद्ध्यति तत्सर्व्वं कथय़स्व महामते ||
ब्रह्मन्! कोन प्रकार सँ दुर्गा महात्म्य उत्तम रूप सँ शीघ्र सिद्ध होइत अछि? कृपया, हे महाबुद्धिमान! हमरा सभटा विस्तार सँ कहू।
॥ 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒼𑒫𑒰𑒔 ॥
॥ ब्रह्मोवाच ॥
ब्रह्मा कहैत छथि:
𑒁𑒩𑓂𑒑𑒪𑓀 𑒏𑒲𑒪𑒏𑓀 𑒔𑒰𑒠𑒾 𑒖𑒣𑒱𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒏𑒫𑒔𑒧𑓂𑒣𑒚𑒹𑒞𑓂 ।
𑒖𑒣𑒹𑒞𑓂𑒮𑒣𑓂𑒞𑒬𑒞𑒲𑒧𑓂𑒣𑒬𑓂𑒔𑒰𑒞𑓂𑒏𑓂𑒩𑒧 𑒋𑒭 𑒬𑒱𑒫𑒼𑒠𑒱𑒞𑓁 ॥
अर्गलं कीलकं चादौ जपित्वा कवचम्पठेत् ।
जपेत्सप्तशतीम्पश्चात्क्रम एष शिवोदितः ॥
प्रारम्भमे अर्गला आ कीलक जपिक’ फेर कवच पढ़बाक चाही। तकरा बाद सप्तशती केर जप करबाक चाही। ई क्रम शिवजी द्वारा बताओल गेल अछि।
𑒁𑒩𑓂𑒑𑒪𑓀 𑒠𑒳𑒩𑒱𑒞𑓀 𑒯𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒏𑒲𑒪𑒏𑓀 𑒤𑒪𑒠𑓀 𑒦𑒫𑒹𑒞𑓂 ।
𑒏𑒫𑒔𑓀 𑒩𑒏𑓂𑒭𑒞𑒹 𑒢𑒱𑒞𑓂𑒨𑓀 𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒰 𑒞𑓂𑒩𑒱𑒞𑒨𑓃𑓀 𑒞𑒟𑒰 ||
अर्गलं दुरितं हन्ति कीलकं फलदं भवेत् ।
कवचं रक्षते नित्यं चण्डिका त्रितय़ं तथा ||
अर्गला दुष्टताक नष्ट करैत अछि। कीलक फल प्रदान करैत अछि। कवच सदिखन रक्षा करैत अछि। एहिना चण्डिका देवी केर तीनू पाठ रक्षा करैत अछि।
𑒁𑒩𑓂𑒑𑒪𑓀 𑒯𑒵𑒠𑒨𑓃𑒹 𑒨𑒮𑓂𑒨 𑒞𑒟𑒰𑒢𑒩𑓂𑒑𑒪𑒫𑒰𑒑𑒮𑒾 ।
𑒦𑒫𑒱𑒭𑓂𑒨𑒞𑒲𑒞𑒱 𑒢𑒱𑒬𑓂𑒔𑒱𑒞𑓂𑒨 𑒬𑒱𑒫𑒹𑒢 𑒏𑒟𑒱𑒞𑓀 𑒣𑒳𑒩𑒰 ॥
अर्गलं हृदय़े यस्य तथानर्गलवागसौ ।
भविष्यतीति निश्चित्य शिवेन कथितं पुरा ॥
जनिका हृदयमे अर्गला अछि, ओ वाणी सँ निर्बाध रूप सँ किछु कहि सकैत छथि। ई शिवजी द्वारा पूर्वकालमे सुनिश्चित कएल गेल अछि।
𑒏𑒲𑒪𑒏𑓀 𑒯𑒵𑒠𑒨𑓃𑒹 𑒨𑒮𑓂𑒨 𑒮 𑒏𑒲𑒪𑒱𑒞𑒧𑒢𑒼𑒩𑒟𑓁 ।
𑒦𑒫𑒱𑒭𑓂𑒨𑒞𑒱 𑒢 𑒮𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒼 𑒢𑒰𑒢𑓂𑒨𑒟𑒰 𑒬𑒱𑒫𑒦𑒰𑒭𑒱𑒞𑒧𑓂 ||
कीलकं हृदय़े यस्य स कीलितमनोरथः ।
भविष्यति न सन्देहो नान्यथा शिवभाषितम् ||
जिनका हृदयमे कीलक अछि, तकर मनोरथ बाधा रहितो पूरा होइत अछि। शिवजी एतबा स्पष्ट रूप सँ कहने छथि जे एकर कोनो संदेह नहि अछि।
𑒏𑒫𑒔𑓀 𑒯𑒵𑒠𑒨𑓃𑒹 𑒨𑒮𑓂𑒨 𑒮 𑒫𑒖𑓂𑒩𑒏𑒫𑒔𑓁 𑒐𑒪𑒳 ।
𑒦𑒫𑒱𑒭𑓂𑒨𑒞𑒲𑒞𑒱 𑒢𑒱𑒬𑓂𑒔𑒱𑒞𑓂𑒨 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒰 𑒢𑒱𑒩𑓂𑒧𑓂𑒧𑒱𑒞𑓀 𑒣𑒳𑒩𑒰 ||
कवचं हृदय़े यस्य स वज्रकवचः खलु ।
भविष्यतीति निश्चित्य ब्रह्मणा निर्म्मितं पुरा ||
जिनका हृदयमे कवच अछि, से मानु वज्रकवचधारी छथि। ई बात ब्रह्मा जी द्वारा प्राचीन कालमे निश्चित कएल गेल अछि।
॥ 𑒧𑒰𑒩𑓂𑒏𑓂𑒏𑒝𑓂𑒛𑒹𑒨𑓃 𑒅𑒫𑒰𑒔 ॥
॥ मार्क्कण्डेय़ उवाच ॥
मार्कण्डेय ऋषि कहैत छथि
𑒖𑒨𑓃 𑒞𑓂𑒫𑒢𑓂𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒔𑒰𑒧𑒳𑒝𑓂𑒛𑒹 𑒖𑒨𑓃 𑒦𑒴𑒞𑒰𑒢𑓂𑒞𑒏𑒰𑒩𑒱𑒝𑒱 ।
𑒖𑒨𑓃 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒑𑒞𑒹 𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒏𑒰𑒪𑒩𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒢𑒧𑒼𑓄𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒞𑒹 ।
𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒞𑒲 𑒧𑒓𑓂𑒑𑒪𑒰 𑒏𑒰𑒪𑒲 𑒦𑒠𑓂𑒩𑒏𑒰𑒪𑒲 𑒏𑒣𑒰𑒪𑒱𑒢𑒲 ।
𑓇 𑒠𑒳𑒩𑓂𑒑𑒰 𑒏𑓂𑒭𑒧𑒰 𑒬𑒱𑒫𑒰 𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒲 𑒮𑓂𑒫𑒡𑒰 𑒮𑓂𑒫𑒰𑒯𑒰 𑒢𑒧𑒼𑓄𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒞𑒹 ॥
जय़ त्वन्देवि चामुण्डे जय़ भूतान्तकारिणि ।
जय़ सर्व्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।
जय़न्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
ॐ दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा नमोऽस्तु ते ॥
जय हो हे देवी चामुण्डा! भूत-पिशाच आदि केँ नाश करयवाली, सर्वत्र विद्यमान रहयवाली देवी केँ जय हो। कालरात्रि देवी केँ प्रणाम। जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी – एहने रूप धरयवाली हे देवी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वधा आ स्वाहा – अहाँ केँ नमस्कार।
𑒧𑒡𑒳𑒏𑒻𑒙𑒦 – 𑒫𑒱𑒠𑓂𑒩𑒰𑒫 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 |
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
मधुकैटभ – विद्राव – विधात्रि वरदे नमः |
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
मधु-कैटभ केँ नष्ट करयवाली हे देवी, अहाँ वरदान दिय, रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒧𑒯𑒱𑒭𑒰𑒮𑒳𑒩𑒮𑒻𑒢𑓂𑒨𑒰𑒢𑓂𑒞 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
महिषासुरसैन्यान्त – विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
महिषासुरक सेनाक नाश करयवाली देवी, अहाँ वरदान दिय, रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒧𑒯𑒱𑒭𑒰𑒮𑒳𑒩𑒢𑒱𑒩𑓂𑒝𑒰𑒬-𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
महिषासुरनिर्णाश-विधात्र वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
महिषासुरक विनाशक कामना पूरा करयवाली हे देवी, अहाँ वरदान दिय, रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒡𑒴𑒧𑓂𑒩𑒪𑒼𑒔𑒢 – 𑒠𑒩𑓂𑒣𑒰𑒢𑓂𑒞- 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
धूम्रलोचन – दर्पान्त- विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
धूम्रलोचनक अहंकार नष्ट करयवाली देवी, अहाँ वरदान दिय, रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒔𑒝𑓂𑒛𑒧𑒳𑒝𑓂𑒛 – 𑒣𑓂𑒩𑒧𑒟𑒢 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
चण्डमुण्ड – प्रमथन – विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
चण्ड-मुण्ड केँ नष्ट करयवाली हे देवी, हमर मनोरथ पूरा करू। अहाँ वरदान दिय, रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒩𑒏𑓂𑒞𑒫𑒲𑒖𑒏𑒳𑒪𑒼𑒔𑓂𑒕𑒹𑒠 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
रक्तवीजकुलोच्छेद – विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
रक्तबीजक वंश केँ नष्ट करयवाली हे देवी, हमरा विजय आ यश दिय। रूप दिय, विजय दिय आ हमर शत्रुकेँ नाश करू।
𑒢𑒱𑒬𑒳𑒧𑓂𑒦𑒣𑓂𑒩𑒰𑒝𑒮𑓀𑒯𑒰𑒩 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
निशुम्भप्राणसंहार – विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
निशुम्भ राक्षसक प्राण संहार करयवाली देवी केँ प्रणाम, हे देवी वरदात्री! हमरा रूप, विजय आ यश प्रदान करू, आ हमर विरोधी केँ नष्ट करू।
𑒬𑒳𑒧𑓂𑒦𑒩𑒰𑒏𑓂𑒭𑒮𑒮𑓀𑒯𑒰𑒩 – 𑒫𑒱𑒡𑒰𑒞𑓂𑒩𑒱 𑒫𑒩𑒠𑒹 𑒢𑒧𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
शुम्भराक्षससंहार – विधात्रि वरदे नमः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
शुम्भ राक्षसक संहार करयवाली देवी केँ प्रणाम रूप दिय, जय आ यश प्रदान करू, आ हमर शत्रु केँ हराबू।
𑒫𑒢𑓂𑒠𑒱𑒞𑒰𑒓𑒒𑓂𑒩𑒱𑒨𑒳𑒑𑒹 𑒬𑓂𑒩𑒲𑒠𑒹 𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒮𑒾𑒦𑒰𑒑𑓂𑒨𑒠𑒰𑒨𑓃𑒱𑒢𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
वन्दिताङघ्रियुगे श्रीदे देवि सौभाग्यदाय़िनि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
वन्दित चरण-कमल वाली देवी, जे सौभाग्य प्रदान करैत छथि, अहाँ केँ प्रणाम। हमरा रूप, विजय आ यश दिय, आ विरोधी केँ नष्ट करू।
𑒁𑒔𑒱𑒢𑓂𑒞𑓂𑒨𑒩𑒴𑒣𑒔𑒩𑒱𑒞𑒹 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒬𑒞𑓂𑒩𑒳𑒫𑒱𑒢𑒰𑒬𑒱𑒢𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
अचिन्त्यरूपचरिते सर्व्वशत्रुविनाशिनि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
अचिन्त्य रूप आ चरित्र वाली, सभ शत्रु केँ नाश करयवाली देवी केँ प्रणाम। हमरा रूप, विजय आ यश प्रदान करू, आ शत्रु केँ हराबू।
𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒮𑒾𑒦𑒰𑒑𑓂𑒨𑒧𑒰𑒩𑒼𑒑𑓂𑒨𑓀 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒣𑒩 𑒮𑒳𑒐𑒧𑓂 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
देहि सौभाग्य़मारोग्यं देहि देवि पर सुखम् ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
हे देवी! हमरा सौभाग्य, आरोग्य आ परम सुख प्रदान करू। रूप, जय आ यश देबाक संग हमर विरोधी केँ पराजित करू।
𑒫𑒱𑒡𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒞𑒰𑒢𑓂𑒢𑒰𑒬𑓀 𑒫𑒱𑒡𑒹𑒯𑒱 𑒥𑒪𑒧𑒳𑒔𑒏𑒻𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
विधेहि द्विषतान्नाशं विधेहि बलमुचकैः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
हे देवी! हमर शत्रु केँ नाश करू आ हमरा बल प्रदान करू। हमरा रूप, विजय आ यश देब आ विरोधी केँ हराबू।
𑒫𑒱𑒡𑒹𑒯𑒱 𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒏𑒪𑓂𑒨𑒰𑒝𑓀 𑒫𑒱𑒡𑒹𑒯𑒱 𑒫𑒱𑒣𑒳𑒪𑒰𑓀 𑒬𑓂𑒩𑒱𑒨𑓃𑒧𑓂 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रिय़म् ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
कल्याण आ अपार संपत्ति प्रदान करयवाली देवी केँ प्रणाम। हमरा रूप, जय आ यश प्रदान करू, आ शत्रु केँ नष्ट करू।
𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒣𑓂𑒩𑒔𑒝𑓂𑒛 — 𑒠𑒼𑒩𑓂𑒠𑓂𑒠𑒝𑒛 – 𑒠𑒻𑒞𑓂𑒨𑒠𑒩𑓂𑒣𑒫𑒱𑒢𑒰𑒬𑒱𑒢𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒭𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
देवि प्रचण्ड — दोर्द्दणड – दैत्यदर्पविनाशिनि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यषोदेहि द्विषोजहि ॥
हे देवी! दैत्यक अहंकार नष्ट करनिहार, प्रचण्ड भुजा वाली, अहाँ केँ प्रणाम। हमरा रूप, विजय आ यश दिय आ विरोधी केँ हराबू।
𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒦𑒏𑓂𑒞𑒖𑒢𑒼𑒠𑓂𑒠𑒰𑒧𑒠𑒞𑓂𑒞𑒰𑒢𑒢𑓂𑒠𑒼𑒠𑒨𑓃𑒹𑓄𑒧𑓂𑒥𑒱𑒏𑒹 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदय़ेऽम्बिके ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
भक्तजन केँ आनंद प्रदान करयवाली हे अम्बिका माता! हमरा रूप, विजय आ यश देब आ हमर विरोधी केँ पराजित करू।
𑒢𑒞𑒹𑒦𑓂𑒨𑓁 𑒮𑒩𑓂𑒫𑓂𑒫𑒠𑒰 𑒦𑒏𑓂𑒞𑒟𑒰 𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒹 𑒠𑒳𑒩𑒱𑒞𑒰𑒣𑒯𑒹 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
नतेभ्यः सर्व्वदा भक्तथा चण्डिके दुरितापहे ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
हे चण्डिका! अहाँ सँ नतमस्तक भक्ति भाव सँ विनती करैत छी। हमरा रूप, जय आ यश प्रदान करू, आ हमर विरोधी केँ हराबू।
𑒮𑓂𑒞𑒳𑒫𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨𑒼 𑒦𑒏𑓂𑒞𑒱𑒣𑒴𑒩𑓂𑒫𑒢𑓂𑒞𑓂𑒫𑒰𑓀 𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒹 𑒫𑓂𑒨𑒰𑒫𑒱𑒢𑒰𑒬𑒱𑒢𑒱 ॥
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वन्त्वां चण्डिके व्याविनाशिनि ॥
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
जे भक्तिभाव सँ अहाँ केँ स्मरण करैत अछि, ओकरे अहाँ रक्षा करैत छी। रूप, विजय आ यश देब आ विरोधी केँ हराबू।
𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒹 𑒮𑒞𑒞𑓀 𑒨𑒹 𑒞𑓂𑒫𑒰𑒧𑒩𑓂𑒔𑒨𑓃𑒢𑓂𑒞𑒲𑒯 𑒦𑒏𑓂𑒞𑒱𑒞𑓁 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
चण्डिके सततं ये त्वामर्चय़न्तीह भक्तितः ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
हे चण्डिके! जे अहाँक इहाँ भक्तिपूर्वक सतत पूजा करैत छथि, हुनका रूप दियू, विजय दियू, यश दियू आ हुनकर शत्रुक नष्ट करू।
𑒮𑒳𑒩𑒰𑒮𑒳𑒩 — 𑒬𑒱𑒩𑒼 – 𑒩𑒞𑓂𑒢𑒢𑒱𑒒𑒵𑒭𑓂𑒙-𑒔𑒩𑒝𑒰𑒧𑓂𑒥𑒳𑒖𑒹 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
सुरासुर — शिरो – रत्ननिघृष्ट-चरणाम्बुजे ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
जिनका चरणकमल देवता आ राक्षस सबहक मस्तकक रत्न सँ शोभित अछि। हमरा रूप, जय आ यश देब आ विरोधी केँ हराबू।
𑒫𑒱𑒠𑓂𑒨𑒰𑒫𑒢𑓂𑒞𑓀 𑒨𑒬𑒮𑓂𑒫𑒢𑓂𑒞𑓀 𑒪𑒏𑓂𑒭𑓂𑒧𑒲𑒫𑒢𑓂𑒞𑓀 𑒖𑒢𑓀 𑒏𑒳𑒩𑒳 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼 𑒖𑒯𑒱 ॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
हे देवी! हमरा विद्यासँ सम्पन्न, यशस्वी आ लक्ष्मीसँ भरल व्यक्ति बनाउ। हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒣𑓂𑒩𑒔𑒝𑓂𑒛𑒠𑒻𑒞𑓂𑒨𑒠𑒩𑓂𑒣𑒒𑓂𑒢𑒱 𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒹 𑒣𑓂𑒩𑒝𑒞𑒰 𑒫𑒨𑒧𑓂 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्नि चण्डिके प्रणता वयम् ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
हे प्रचण्ड दैत्यक गर्वकेँ नष्ट करयवाली चण्डिके! हम अहाँक शरणमे छी। हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒔𑒞𑒳𑒥𑓂𑒩𑓂𑒦𑒳𑒖𑒹 𑒔𑒞𑒳𑒩𑓂𑒫𑒏𑓂𑒞𑓂𑒩-𑒮𑓀𑒮𑓂𑒞𑒳𑒞𑒹 𑒣𑒩𑒧𑒹𑒬𑓂𑒫𑒩𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
चतुब्र्भुजे चतुर्वक्त्र-संस्तुते परमेश्वरि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ॥
हे चारि भुजा आ चारि मुखवाली, जे सभकँ द्वारा स्तुत्य छथि, परमेश्वरी! हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒏𑒵𑒭𑓂𑒝𑒼𑒢 𑒮𑓀𑒮𑓂𑒞𑒳𑒞𑒹 𑒠𑒹𑒫𑒱 𑒬𑒬𑓂𑒫𑒠𑓂𑒦𑒏𑓂𑒞𑒔𑒰 𑒮𑒠𑒰𑓄𑒧𑓂𑒥𑒱𑒏𑒹 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼 𑒖𑒯𑒱 ॥
कृष्णोन संस्तुते देवि शश्वद्भक्तचा सदाऽम्बिके ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषो जहि ॥
हे देवी! जिनकर श्रीकृष्ण द्वारा सदिखन स्तुति होइत अछि आ जे सदैव भक्तजनकँ रक्षाक लेल आओती छथि, हे अम्बिका! हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒯𑒱𑒧𑒰𑒔𑒪 – 𑒮𑒳𑒞𑒰-𑒢𑒰𑒟–𑒮𑓀𑒮𑓂𑒞𑒳𑒞𑒹 𑒣𑒩𑒧𑒹𑒬𑓂𑒫𑒩𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
हिमाचल – सुता-नाथ–संस्तुते परमेश्वरि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशोदेहि द्विषोजहि ।।
हे परमेश्वरी! जे अहाँक हिमाचलक कन्या पार्वतीक नाथ (भगवान शंकर) द्वारा स्तुति कएल जाइत छथि। हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒃𑒢𑓂𑒠𑓂𑒩𑒰𑒝𑒲-𑒣𑒞𑒱-𑒮𑒠𑓂𑒦𑒰𑒫-𑒣𑒴𑒖𑒱𑒞𑒹 𑒣𑒩𑒧𑒹𑒬𑓂𑒫𑒩𑒱 ।
𑒩𑒴𑒣𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒖𑒨𑓃𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒨𑒬𑒼 𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒠𑓂𑒫𑒱𑒭𑒼𑒖𑒯𑒱 ॥
इन्द्राणी-पति-सद्भाव-पूजिते परमेश्वरि ।
रूपन्देहि जय़न्देहि यशो देहि द्विषोजहि ॥
हे परमेश्वरी! जे इन्द्राणीक पति सँ सद्भाव सँ पूजित छथि, हमरा रूप दियू, विजय दियू, यश दियू, आ हमर शत्रुकेँ नष्ट करू।
𑒣𑒞𑓂𑒢𑒲𑒧𑓂𑒧𑒢𑒼𑒩𑒧𑒰𑒢𑓂𑒠𑒹𑒯𑒱 𑒧𑒢𑒼𑒫𑒵𑒞𑓂𑒞𑒰𑒢𑒳𑒮𑒰𑒩𑒱𑒝𑒲𑒧𑓂 ।
𑒞𑒰𑒩𑒱𑒝𑒲𑓀 𑒠𑒳𑒩𑓂𑒑-𑒮𑓀𑒮𑒰𑒩–𑒮𑒰𑒑𑒩𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒳𑒪𑒼𑒠𑓂𑒦𑒫𑒰𑒧𑓂 ॥
पत्नीम्मनोरमान्देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्ग-संसार–सागरस्य कुलोद्भवाम् ॥
अहाँ सँ अनुरोध करैत छी जे हमरा अनुरूप पत्नी प्रदान करू, जे हमर मनोवृत्ति केँ समझय। जीवन रूपी संसार-सागर सँ पार लगाबयवाली आ कुल केँ गौरवान्वित करयवाली स्त्री देब।
𑒃𑒠𑓀 𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑓀 𑒣𑒚𑒱𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒞𑒳 𑒧𑒯𑒰𑒮𑓂𑒞𑒼𑒞𑓂𑒩𑒧𑓂𑒣𑒚𑒹𑒢𑓂𑒢𑒩𑓁 ।
𑒮 𑒞𑒳 𑒮𑒣𑓂𑒞𑒬𑒞𑒲𑒮𑒓𑓂𑒐𑓂𑒨𑒰𑒫𑒩𑒧𑒰𑒣𑓂𑒢𑒼𑒞𑒱 𑒮𑒧𑓂𑒣𑒠𑓁 ||
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रम्पठेन्नरः ।
स तु सप्तशतीसङ्ख्यावरमाप्नोति सम्पदः ||
ई स्तोत्रक पाठ कएला बाद महास्तोत्रक पाठ करयवाला व्यक्ति सप्तशती जपक अनुसार उत्तम सम्पत्ति प्राप्त करैत अछि।
𑒁𑒩𑓂𑒑𑒪𑓀 𑒣𑒰𑒣𑒖𑒰𑒞𑒮𑓂𑒨 𑒠𑒰𑒩𑒱𑒠𑓂𑒩𑓂𑒨𑒮𑓂𑒨 𑒞𑒟𑒰𑓄𑒩𑓂𑒑𑒪𑒧𑓂 ।
𑒃𑒠𑒧𑒰𑒠𑒾 𑒣𑒚𑒱𑒞𑓂𑒫𑒰 𑒞𑒳 𑒣𑒬𑓂𑒔𑒰𑒔𑓂𑒕𑓂𑒩𑒲𑒔𑒝𑓂𑒛𑒱𑒏𑒰𑒧𑓂𑒣𑒚𑒹𑒞𑓂 ||
अर्गलं पापजातस्य दारिद्र्यस्य तथाऽर्गलम् ।
इदमादौ पठित्वा तु पश्चाच्छ्रीचण्डिकाम्पठेत् ||
अर्गला स्तोत्र पापक अर्गला (बाधा) आ दरिद्रता केँ दूर करैत अछि। प्रारम्भ में एही स्तोत्रक पाठ कएला पर श्रीचण्डिका स्तोत्रक पाठ करबाक चाही।
|| * 𑒃𑒞𑓂𑒨𑒩𑓂𑒑𑒪𑒰𑒮𑓂𑒞𑓂𑒩𑒼𑒞𑓂𑒩𑒧𑓂 *||
|| * इत्यर्गलास्त्रोत्रम् *||